Thursday 2 August, 2012

फूल को देखा ह

फूल है एक साहस, फूल है एक विजय का प्रतीक, फूल है एक सास्वत्ता !

फूल है एक हँसी, फूल है एक ख़ुशी, फूल है एक सपना ...... सुन्दर सपना !

फूल है एक जीवन, फूल है एक आशा, फूल हैएक ताजगी !

फूल की संभावनायें अन्नंत हैं क्यूं की मनुष्य के मन की दशायें अनंत हैं ! सत्य को जाने तो फूल की सम्भावना स्थिर है, कुछ नहीं है ! जो भाव हमे फूल के द्वारा मिलते हैं वे फूल के नहीं हमारे भाव हैं, फूल तो है एक दर्पण वही लौटा देता है जो दिखता है !

हमारे मन में प्रिय मिलन की चाहत है तो फूल उत्प्रेरक बन जाते हैं, किसी दुःख के साए में हमे शीतलता प्रदान करते हैं !

सत्य को जानें थो प्रकृति की हर चीज़ एक दर्पण है, हमे वही  लौटाती है जो हम हैं ! हम खुश हैं तो ख़ुशी और यदि दुखी हैं तो दर्द !!!


सिर्फ एक कविता मे मेरा

सिर्फ एक कविता मे मेरा
जीवन ना सिमट जायेगा !
सिर्फ एक कविता
मे मेरा
सपना नहीं आ पायेगा !

मैं उम्र भर जो ना कह सका
वो आज कहता हूँ तुम्हे
तुम नहीं होगे
तो
मेरा जीवन नहीं मिट जायेगा !!

है उदासी उन लबों पे जो कभी गुलजार थे
तुम ना खिलोगे तो ये गुलशन नहीं मिट जायेगा !
होश मे आओं, अभी भी हैं बहुत सी मंजिलें
तुम ना चलोगे तो ये रास्ता नहीं मिट जायेगा !!

मैं बहुत जोरों से प्यासा था तेरे रुखसार का
तू नहीं देगा तो क्या कोई और ना पिलाएगा !
अब तो दामन छोड़ दो मोहसिन आरामे फिक्र का
खाली तेरे बैठने से सब तबाह हो जायेगा !!

Friday 18 December, 2009

मेरे ईश्वर क्या करूँ....

मन मे अन्तर्द्वंद है,
सब दरवाजे बंद हैं
मेरे ईश्वर क्या करूँ....

खोजा, पर ना पा सका,
मुश्किल पथ ना जा सका
मेरे ईश्वर क्या करूँ....

साहस तुमसे पाया है,
फिर मन क्योँ घबराया है
मेरे ईश्वर क्या करूँ...

दिखा नहीं कोई रास्ता,
इसीलिए उदास था
मेरे ईश्वर क्या करूँ....

तुम हाथ मे मेरा हाथ लो,
मुझे मुश्किलों से उबार लो
मेरे संग चलो, मेरे साथ हो
ये ही बस अरमान है
मेरे ईश्वर क्या करूँ.....

Wednesday 9 December, 2009

मन खोजा मैं आपणा - 1

हम नहीं जानते की हम कौन हैं, ना ये की हम क्या हैं! बात सिर्फ ये नहीं है बात ये भी है की हम जानना भी नहीं चाहते हैं | अँधेरा है तो हम अँधेरे मै ही खुश हैं ! खुश ? नहीं !!! हम खुश तो कभी नहीं हैं, हम तो बस हैं, हम बस ये ही समझ पाए हैं की हम हैं |

अब  ये होना भी कोई होना है जिस होने में कोई चेतना ही ना हो | चेतना ? जी हाँ चेतना, चेतना का साधारण सा अर्थ है 'जागरूकता' | अगर हम अपने आप के प्रति जागरूक हो जायें तो कोई कारन नहीं की हम वो सब कुछ पा लें जो हम पाना चाहते हैं हमेशा से |  आंतरिक या बाहरी आकांशा जो भी हो वो जागरूकता से पायी जा सकती है | क्रमश :

Tuesday 8 December, 2009

याद आ रही है न जाने क्योँ

मुस्कुरा रहा हूँ मैं, 
न जाने क्योँ !
याद आ रही है जिन्दगी 
न जाने क्योँ !!


अहसास भी ना रहा, जिन शाखों मे
आ रही हैं नयी क़लिया, 
न जाने क्योँ !
समंदर रेत का दरिया सा बन जाता है 
सिमट रही है सारी दुनिया,
न जाने क्योँ !!


मुमकिन नहीं है अब भी, उनसे नज़र मिलाना 
कदम उनके घर को निकल जाते हैं,
न जाने क्योँ !
मेरे हाथों मे वो ही हैं लखीरें अब भी 
लेकिन जज्बा है नया सीने मे,
न जाने क्योँ !!


खालिद वो मेरे घर तक आये मिलने को 
हमने अन्दर न बुलाया 
न जाने क्योँ !
जिन्दगी झूंठ है ख़तम हो जाएगी एक दिन 
हमे ये याद नहीं है,
न जाने क्योँ !!


Sunday 29 November, 2009

क्या करैं हम खुदा ....

क्या करैं हम खुदा, तू बता दे हमे
हम हैं मजबूर तेरे जहां में खड़े !

वो तो मुमकिन नहीं था की, ये सर कटे
वर्ना आशिक बड़े, हम थे तेरे !!

तेरे बन्दों ने इतना करम ही किया
काट डाले मेरे हाथ लम्बे बड़े !!!

मैं तेरी बंदिशों से परेसान हूँ
या तो कर तू रहम, या मिटा दे मुझे !!!!

क्या करैं हम खुदा ....

पापा का है सपना बस इस लिए

 पापा का है सपना
 बस इस लिए !
लेता हूँ मैं उड़ान, भरता हूँ परों में जान
बस इसलिए !

पाता हूँ रोज नयी मंजिलें, छुता हूँ नए आकाश
बस इसलिए !
पापा को मुझ में है विस्वास
बस इसलिए !
पापा का है ....

हज़ारों मेघ तम के घेर लें, चाहे मुझे लेकिन
उन्हें अपनी ज्योति पे है विस्वास
बस इसलिए !
फैलाता हूँ मैं प्रकाश
बस इसलिए !

थकता हूँ मैं भी रोज, गिरता हूँ मैं भी
भरता हूँ सीने में नयी सांस
बस इसलिए !
पाना है कुछ ख़ास
बस इसलिए !
पापा का है ....